मध्यकालीनभारतीयसमाज‘सामंतवादीसमाज’होनेकेकारणअनेकसामाजिकबुराइयोंसेग्रस्तथा।उससमयजाति-प्रथा, ऊंच-नीच,कन्या-हत्या,सती-प्रथाजैसीअनेकबुराइयांसमाजमेंप्रचलितथीं।येबुराइयांसमाजकेस्वस्थविकासमेंअवरोध बनकरखड़ीथीं।ऐसेकठिनसमयमेंगुरुअमरदासजीनेइनसामाजिककुरीतियोंकेविरुद्धबड़ाप्रभावशालीआंदोलनचलाया। जाति-प्रथाएवंऊंच-नीचकोसमाप्तकरनेकेलिएगुरुजीनेलंगरप्रथाकोऔरसशत्तफ़किया।उसजमानेमेंभोजनकरनेके लिएजातियोंकेअनुसार‘पांतें’लगाकरतीथीं,लेकिनगुरुजीनेसभीकेलिएएकहीपंगतमेंबैठकर‘लंगरछकना’(भोजन करना)अनिवार्यकरदिया।
मध्यकालीनभारतीयसमाज‘सामंतवादीसमाज’होनेकेकारणअनेकसामाजिकबुराइयोंसेग्रस्तथा।उससमयजाति-प्रथा, ऊंच-नीच,कन्या-हत्या,सती-प्रथाजैसीअनेकबुराइयांसमाजमेंप्रचलितथीं।येबुराइयांसमाजकेस्वस्थविकासमेंअवरोध बनकरखड़ीथीं।ऐसेकठिनसमयमेंगुरुअमरदासजीनेइनसामाजिककुरीतियोंकेविरुद्धबड़ाप्रभावशालीआंदोलनचलाया। जाति-प्रथाएवंऊंच-नीचकोसमाप्तकरनेकेलिएगुरुजीनेलंगरप्रथाकोऔरसशत्तफ़किया।उसजमानेमेंभोजनकरनेके लिएजातियोंकेअनुसार‘पांतें’लगाकरतीथीं,लेकिनगुरुजीनेसभीकेलिएएकहीपंगतमेंबैठकर‘लंगरछकना’(भोजन करना)अनिवार्यकरदिया।